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श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः। पदार्थ- [एवं ] इस पूर्वोक्त प्रकारसे [ सतः ] स्वाभाविक अविनाशी स्वभावका [विनाशः ] नाश [ न अस्ति ] नहीं है. [ असतः जीवस्य ] जो स्वाभाविक जीवभाव नहीं है तिसका [ उत्पादः ] उपजना [ नास्ति ] नहीं है [ तावत् ] प्रथम ही यह जीवका स्वरूप जानना. और [ जीवानां ] जीवोंका [ देव मनुष्यः इति ] देव है, मनुष्य है, इत्यादि कथन है सो [गतिनामः ] गतिनामवाले नामकर्मकी विपाकअवस्थासे उत्पन्न हुवा कर्मजनित भाव है।
भावार्थ-जीव द्रव्यका कथन दो प्रकार है । एक तौ उत्पादव्ययकी मुख्यतालियेहुये, दूसरा ध्रौव्यभावकी मुख्यतालियेहुये । इन दोनों कथनोंमें जब ध्रौव्यभावकी मुख्यताकर कथन किया जाय, तव इस ही प्रकार कहा जाता है कि जो जीवद्रव्य मरता है, सो ही उपजता है. और जो उपजता है, वही मरता है । पर्यायोंकी परंपरामें यद्यपि अविनाशी वस्तुके कथनका प्रयोजन नहीं है, तथापि व्यवहारमात्र ध्रौव्यस्वरूप दिखानेकेलिये ऐसें ही कथन किया जाता है । और जो उत्पादव्ययकी अपेक्षा जीवद्रव्यका कथन किया जाता है कि और ही उपज है, और ही विनशै है, सो यह कथन गतिनामकर्मके. उदयसे जानना । कैसे कि जैसे,—मनुष्यपर्याय विनशै है, देवपर्याय उपजै है सो कर्मजनित विभावपर्यायकी अपेक्षा यह कथन अविरुद्ध है. इसकारण यह वात सिद्ध हुई कि ध्रौव्यताकी अपेक्षासे तो वही जीव उपजै और वही जीव विनशै है और उत्पादव्ययकी अपेक्षा अन्य जीव उपजै है और अन्यही विनशै है । यह ही कथन दृष्टान्तसे विशेष दिखाया जाता है । जैसे—एक वडा बांस है, उसमें क्रमसे अनेक पौरी हैं. उस वांसका जो विचार किया जाता है तो दो प्रकारके विचारसे उस वांसकी सिद्धि होती है. एक सामान्यरूप वांसका कथन है. एक उसमें विशेषरूप पौरियोंका कथन है. जब पौरियोंका कथन किया जाता है तो जो पौरी अपने परिणामको लियेहुये जितनी हैं, उतनी ही हैं। अन्य पौरीसे मिलती नहीं हैं. अपने अपने परिमाणलियेहुये सब पौरी न्यारी न्यारी हैं. बांस सब पौरियोंमें एक ही है. जब वांसका विचार पौरियोंकी पृथक्तासे किया जाय, तब बांसका एक कथन आवै नही. जिस पौरीकी अपेक्षासे वांस कहा जाय सो तिस ही पौरीका बांस होता है. उसको और पौरीका बांस नहिं कहा जाता. अन्य पौरीकी अपेक्षा वही बांस अन्य पौरीका कहा जाता है, इस प्रकार पौरियोंकी अपेक्षासे बांसकी अनेकता है और जो सामान्यरूप सब पौरियोंमें बांसका कथन न किया जाय तो एक वांसका कथन कहा जाता है. इस कारण वांसकी अपेक्षा एक वांस है । पौरीनकी अपेक्षा एक बांस नहीं है. इसी प्रकार त्रिकाल अविनाशी जीव द्रव्य एक है. उसमें क्रमवर्ती देवमनुप्यादि अनेक पर्याय हैं, सो वे पर्याय अपने २ परिमाण लियेहुये हैं । किसी भी पर्यायसे कोई पर्याय मिलती नहीं है, सब न्यारी न्यारी हैं । जब पर्यायोंकी अपेक्षा जीवका विचार किया जाता है तो