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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो। गुणपजयेसु भावा उप्पादवए पकुव्वंति ॥ १५ ॥ संस्कृतछाया.. . भावस्य नास्ति नाशो नास्ति अभावस्य चैव उत्पादः । गुणपर्यायेपु भावा उत्पादव्ययान् प्रकुर्वन्ति ॥ १५ ॥ पदार्थ-[भावस्य ] सत्रूप पदार्थका [ नाशः ] नाश [ नास्ति ] नहीं है [ च एव ] और निश्चयसे [ अभावस्य ] अवस्तुका [ उत्पादः ] उपजना [ नास्ति ] नहीं है । यदि ऐसा है तो वस्तुके उत्पादव्यय किसप्रकार होते हैं ? सो दिखाया जाता है. [भावाः] जो पदार्थ हैं ते [गुणपर्यायेषु] गुणपर्यायोंमें ही [उत्पादव्ययान्] उत्पाद और व्यय [प्रकुर्वन्ति ] करते हैं। भावार्थ-जो वस्तु है उसका तो नाश नहीं है और जो वस्तु नहीं है, उसका उत्पाद (उपजना) नहीं है । इसकारण द्रव्यार्थिकनयसे न तो द्रव्य उपजै है और न विनशै है । और जो त्रिकाल अविनाशी द्रव्यके उत्पादव्यय होते हैं, वे पर्यायार्थिक नयकी विवक्षाकर गुणपर्यायोंमें जानने । जैसें गोरस अपने द्रव्यत्वकर उपजता विनशता नहीं है-अन्यद्रव्यरूप होकर नहिं परणमता है आपसरीखा ही है, परन्तु उसी गौरसमें दधि, माखन, घृतादि, पर्याय उपजै विनशै हैं, वे अपने स्पर्श रस गन्ध वर्ण गुणोंके परिणमनसे एक अवस्थासे दूसरी अवस्थामें हो जाते हैं. इसी प्रकार द्रव्य अपने स्वरूपसे अन्यद्रव्यरूप होकरके नहिं परिणमता है. सदा आपसरीखा है. अपने २ गुण परिणामनसें एक अवस्थासे दूसरी अवस्थामें हो जाता है, इस कारण उपजते विनशते कहे जाते हैं। आगे पद्र्व्योंके गुणपर्याय कहते हैं । भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगो। सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा (?) ॥ १६॥. संस्कृतछाया. भावा जीवाद्या जीवगुणाश्चेतना चोपयोगः । सुरनरनारकतिर्यञ्चो जीवस्य च पर्यायाः बहवः ॥ १६ ॥ पदार्थ- [भावाः] पदार्थ [जीवाद्याः] जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल ये छै जानने । इन पट् द्रव्योंके जो गुण पर्याय हैं, वे सिद्धान्तोंमें प्रसिद्ध हैं, तथापि इनमें जीवनामा पदार्थ प्रधान है । उसका स्वरूप जाननेकेलिये असाधारण लक्षण कहा जाता है. [जीवगुणाः चेतना च उपयोगः] जीव द्रव्यका निज लक्षण एक तौ शुद्धाशुद्ध अनुभूतिरूप चेतना है और दूसरा-शुद्धाशुद्धचैतन्यपरिणामरूप उपयोग है. ये जीवद्रव्यके गुण हैं. [च] फिर [जीवस्य ] जीवके [बहवः] नानाप्रकारके, [सुरनरनारकतिर्यञ्चः पर्यायाः ] देवता मनुष्य नारकी तिर्यञ्च ये अशुद्धपर्याय जानने ।
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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