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________________ श्रीपञ्चास्तिकायसमयसारः । १२३ अब ग्रन्थकर्त्ताने प्रतिज्ञा की थी कि मैं पञ्चास्तिकाय ग्रन्थ कहूंगा सो उसको संक्षेपमें ही करके समाप्त करते है । मग्गष्पभावणङ्कं पवयणभत्तिप्पचोदिदेण मया । भणियं पवयणसारं पंचत्थिय संगहं सुतं ॥ १७३ ॥ संस्कृतछाया. मार्गप्रभावनार्थ प्रवचनभक्तिप्रचोदितेन मया । भणितं प्रवचनसारं पञ्चास्तिकायसंग्रहं सूत्रं ॥ १७३ ॥ पदार्थ – [ मया ] मुझ कुन्दकुदाचार्यने [पञ्चास्तिकायसङ्ग्रहं ] कालके बिना पंचास्तिकायरूप जो पांच द्रव्य उनके कथनका संग्रह है जिसमें ऐसा जो यह [ सूत्रं ] शब्द अर्थ गर्मित संक्षेप अक्षर पद वाक्य रचना सो [ भणितं ] पूर्वाचार्यों की परंपराय शब्द ब्रह्मानुसार कहा है । कैसा है यह पञ्चास्तिकाय ग्रंथ ? [ प्रवचनसारं ] द्वादशांगरूप जिनवाणीका रहस्य है. कैसा हूं मैं? [ प्रवचनभक्तिप्रचोदितेन ] सिद्धान्त कहनेके अनुरागकर प्रेरित किया हुवा, किसलिये यह ग्रन्थ रचना कियी ? [ मार्गप्रभावनार्थ ] जिनेन्द्र भगवन्त प्रणीत जिनशासनकी वृद्धिकेलिये । भावार्थ–संसारविषयभोगसे परम वैराग्यताकी करनेहारी भगवन्तकी आज्ञाका नाम मोक्षमार्ग है. उसकी प्रभावनाके अर्थ यह ग्रन्थ मैने किया है अथवा उस ही मोक्षमार्गका उद्योत किया है सिद्धान्तानुसार संक्षेपतासे भक्तिपूर्वक पञ्चास्तिकाय नामा मूलसूत्र ग्रन्थ कहा है । इसप्रकार ग्रन्थकर्त्ता श्री कुंदकुंदाचार्य महाराजने यह ग्रन्थ प्रारंभ किया था सो उसके पारको प्राप्त हुये. अपनी कृत्यकृत्य अवस्था मानी, कर्मरहित शुद्धस्वरूपमें स्थिरभाव किया, ऐसी हमारेमें भी श्रद्धा उपजी है । इति श्रीसमयव्याख्यायां नवपदार्थपुरःसरमोक्षमार्गप्रपञ्चवर्णनो नाम द्वितीयश्रुतस्कन्धः समाप्तः । यह भाषावालावबोध कुछयक अमृतचन्द्रसूरीकृत टीकाके अनुसार श्रीरूपचन्द्र गुरुके प्रसादथी पांडे हेमराजने अपनी बुद्धिमाफिक लिखित कीनी. उसीके अनुसार सुजानगढ जिले बीकानेर निवाथी पन्नालाल बाकलीवाल दिगम्बरी जैनने सरल हिंदीभाषा में लिखी । मिती चैत्रवदि ५ सं० १९६९ वार रविवार ता० ६ मार्च सन १९०४ के प्रातःकाल ही पूर्ण किया । श्रीरस्तु शुभमस्तु ||
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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