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प्रस्तावना
तस्सेव य वर-सिस्सो णिम्मल-वरणाण-चरण-संजुत्तो। सम्मइंसण-सुद्धो सिरिणंदिगुरु त्ति विक्खाओ ॥१५६ ॥ तस्स णिमित्तं लिहियं (रइयं) जंबुदीवस्स तह य पण्णत्ती । जो पढइ सुणइ एदं सो गच्छइ उत्तमं ठाणं ॥ १५७॥ पंच-महव्वय-सुद्धो दसण-सुद्धा य णाण-संजुत्तो । संजम-तव-गुण-सहिदो रागादि-विवज्जिदो धीरो ॥ १५८ ॥ पंचाचार-समग्गो छज्जीव-दयावरो विगद-मोहो । हरिस-विसाय-विहूणो णामेण वीरणदि त्ति ॥ १५६ ॥ तस्सेव य वर-सिस्सो सुत्तत्थ-वियक्खयो मइ-पगब्भो । पर-परिवाद-णियत्तो णिस्संगो सब-संगेसु ॥ १६० ॥ सम्मत्त-अभिगद-मणे णाणे तह दंसणे चरित्ते य । परतंति-णियत्तमणो बलणंदिगुरु त्ति विक्खाओ ॥ १६१ ॥ तस्स य गुण-गण-कलिदो तिदंडरहिदो तिमल्ल-परिसुद्धो । तिरिण वि गारव-रहिदो सिस्सो सिद्धंत-गय-पारो ॥ १६२ ॥ तव-णियम-जोग-जुत्तो -उज्जुत्तो णाण-दसण-चरित्ते । प्रारंभकरण-रहिदो णामेण पउमणंदि ति ॥ १६३ ॥ मिरिगुरुविजय-मयासे सोऊणं आगमं सुपरिसुद्धं । मुणिपउमणंदिणा खलु लिहियं एयं ममासेणा ॥ १६४ ।। सम्मइंसण-सुद्धो कद-बद-कम्मो सुसील-संपण्णो । अणवरय-दाणसीलो जिणसासण-वच्छलो धीरो ॥ १६५ ॥ गाणा-गुण-गण-कलिओ णग्वइ-संपूजिओ कला-कुसलो । । वारा-पयरस्स पहू गरुत्तमो मत्ति संति)- भूपालो ॥ १६६ ॥ पोक्खरणि-वावि-पउरे बहु-भवण-विहूसिए परम-रम्मै । गाणा-जण-संकिरणे धण-धरा-समाउले दिव्ये ॥ १६७ ॥ सम्मादिट्ठिजणाघे मुणि गण णिवहेहिं मंडिये रम्म । देसम्मि पारियत्ते जिणभवण-विहूसिए दिव्वे ॥१६८ ॥ जंबुदीवस्स तहा पएणत्ती बहुपयत्थसंजुत्तं(त्ता) । लिहिय(या) संखेवेणं काराए अच्छमाणे ॥ १६६ ॥ छदुमत्थेण विरइयं जं कि पि हवेज्ज पवयण-विरुद्ध । सोधंतु सुगीदत्था तं पवयण-बच्छलचाए । १७० ॥
-उद्देश १३ इस प्रशस्तिमे प्रथकारने अपनेको गुणगणकलित, त्रिदण्डरहित, त्रिशल्यपरिशुद्ध, त्रिगारवरहित, सिद्धान्तपारंगत, तपनियमयोगयुक्त, ज्ञानदर्शनचरित्रोक्त और प्रारम्भ