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पुराण आर जन धम
आया हूं आप मेरी रक्षा करो। आप इस अग्नि को शान्त कीजिये मैं आपको शपथ पूर्वक आपके सभी अधिकार देता हूं आप अब क्षमा करें। यह सुन ब्राह्मणों को बड़ी दया आई और हनुमान जी की दी हुई दूसरी पुड़िया से उन्होंने अग्नि को शान्त कर दिया और सब कुछ पूर्व के समान ही बन गया इत्यादि ।"*
आलोचक-पाठकों ने स्कन्ध पुराण के विस्तृत लेख को संक्षेप से सुन लिया इससे अधिक बाद विवाद करना व्यर्थ है सिर्फ एक आधि वात पर ही हम यहां थोड़ा सा विचार करेंगे। हम पीछे कह चुके हैं कि अधिकांश जनों में जैन और बौद्ध को एक मानने तथा लिखने का जो अन्ध विश्वास और अन्ध परम्परा चल रही है उसका मुख्य कारण पुराण हैं। हमारे इस कयन को स्कन्ध पुराण मे देखे गये "वर्तता जैनधर्मेण प्रेरितेनेन्द्रसूरिणा" "जामाता तस्य दुष्टो वै नाम्ना कुमारपालकः, पापण्डैर्वेष्टितो नित्यं कलिधर्मेण संमत: 1८५1 इन्द्रसूत्रेण जैनेन प्रेरितो बौद्धधर्मिणा" इन वाक्यों में और भी अधिक प्रमाणित कर दिया है। परन्तु इस बात को इतिहास का जानकर कोई भी निपक्ष विद्वान् मानने के लिये तयार नहीं होगा । अतः स्कन्ध पुराण का यह कथन प्रमाण विरुद्ध और विश्वास के अयोग्य है।
___ * कन्यपुराण में यह लेख बड़ा ही विस्तृत है हमने उसका बहुत ही मंतिप्त सार दिया है वह भी अनुवाद कामे नहीं किन्तु मर्म स्प से। अधिक देखने को इच्छा वाले कन्यपुराण को देखें।