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पुराण और जैन धर्म
'परन्तु इस कार्य में ब्राह्मणों को बहुत कट हुआ। जिन्न चिनहर व मब मिल कर श्राम गना के पाम गये । मगर राजा ने अभ्युन्थानादि में उनका उचित मजार नहीं किया । राजा के पूछने पर ब्राह्मणों ने कहा कि हम धमारण्य मे चलकर यहां भागे हैं। आपके जामाता कुमारपाल ने बामणों का शानन लुन कर दिया। बह इन्द्रचूरि की प्रेरणा ने श्रव जैन धर्म का पालन करने लगा गया है। यह मुन गजा ने कहा कि प्रापको मोहरक में प्रथम निसने स्थान दिया ? म पर ब्रामणों ने कहा कि हमको या काजशा और धर्मराज ने प्रथम स्थान दिया । अनन्तर राम ने कहा पुगे की रचना की | राम के शासन को अन्यान्य राजामा ने भा
वारणा ऊचु:-काजग म्यारिता. पुत्र धर्मगजेन धीमना ।
रना चारशुभम्भाने रामेण च नन पुगे ॥ ५६ ॥ गायन गमचन्द्रम्य वान्ग जभिः । पानितं धर्मतीपत्र गामन नृपसनम ! ॥ ५ ॥
दानी नय गमाना विमान पालयने नहि । नागरिमग तु राना मिानपानबीन ॥४ पान्नु जर हि भो मिा ! करायन्तुममाश्या । मो शुमार मार दी। मालपम् ॥६॥ प्रवाशाय नती गिरा पापमुगगता । नग्ननोनिमुदिना पाच नरनिदिनं ॥ ६ ॥
मुरम्य व ग गगनमानीत । गर मार लिा ! पापियामा नहि ॥६." यानि भादगान को
। मम्माटिगिराना मुनम मतिरहिन । ६२ ॥