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पुराण और जैन धर्म
करना पड़ता है ! धर्मावतार इस सहाय हीन किङ्करी को आज्ञा दें नो मैं आपके सामने खड़े हुए इस भद्र पुरुष को अपना आश्रयदाता बनालूं ? उस रमणी की बनावटी दोनता से न्यायाधीश महोदय का भी दयालु हृदय पिघल गया इसलिये उन्होंने उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर उसे वैसा करने के लिये आज्ञा दे दी और क़ानून के सुताविक इस सारी राम कहानी को क़लम बन्द कर लिया ( सब वृत्तान्त की मिसल बन गई ) कुछ दिन के बाद उसके असली पतिराम भी विदेश से लौटे, और जब वे घर में आये तो वहां उनको और हो रंग नजर आया ! वह गुड़िया जिसको वह अपने प्राणों से अधिक समझता था वह अब दूसरे के हाथों में खेल रही है, उसकी तरफ अत्र नजर उठाकर भी देखने का अधिकार नहीं रहा ! समय को बलिहारी है ! अन्ततो गत्वा उस विचारे ने भी उसी न्यायालय की शरण ली । और न्यायाधीश से गिड़गिड़ा कर बोला कि धर्मावतार ! मेरे साथ बहुत अन्याय हुआ, मेरे विदेश जाने पर मेरी स्त्री को किसी अन्य पुरुष ने जबरदस्ती अपने कावू में कर लिया है और मेरी सारी धन सम्पत्ति लूट ली है इसलिये सरकार उसे वापिस दिलाने की कृपा करें ? यह सुन न्यायाधीश महोदय बोले कि तुम तो विदेश में जाने के कुछ दिन बाद ही मर गये थे फिर तुम्हारा यहां पर आगमन कैसे ? यह सुन वादी को बहुत विस्मय हुआ और वह बड़े ही गदगद स्वर मे बोला कि नहीं महाराज ! यह कथन सर्वथा असत्य है यह गरीब तो आपके सामने सड़ा है ? इस पर न्यायाधीश महोदय जरा चुपके से होकर बोले कि हां ! बात तो ठीक है लेकिन मिमल में लिखा हुआ है