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पुराण और जैन धर्म बो, प्राण रक्षा के लिये जैन मन्दिर में घुसने की अपेक्षा हस्ती के नीचे आकर मर जाना बेहतर है परन्तु जीवन बचाने की खातिर भी जैन मंदिर में घुसना अच्छा नहीं !" इस उक्ति से जैन धर्म के साथ अन्य धमानुयायियों को किस सीमा तकप्रेम रखने का उपदेश मिलता है, इसकी कल्पना हमारी बुद्धि से बाहर है। इसमें संदेह नहीं कि इस प्रकार की उक्तियों का प्रचार उस समय में होता है जब कि परस्पर की विरोधाग्नि, कल्पनातीत दशा तक पहुंच जाती है । परन्तु इसमें भी संदेह करना निरर्थक है कि उक्त किं वदन्ती के मूलोत्पादक पुराण-वर्णित जैनमत सम्बन्धी विचित्र इतिहासही हैं। यदि इनमें, जैन अन्यों में उल्लेख किये गये परमत विरोधी इतिवृत्त भी सम्मिलित हो तो कुछ आश्चर्य नहीं । अस्तु अब हम इस अनधिकार चर्चा को यहीं पर समाम करते हुए प्रस्तुत विपय की ओर अपने पाठको का ध्यान खेचते हैं।
[श्रीमद्भागवत और जैन धर्म ] आज कल अठारह पुराणों के नाम से जो जो अन्य उपलब्ध होते हैं उनमें भागवत का नाम सर से अधिक प्रसिद्ध है। इस पुराण के लिये जनता के हृदय में जितना आदर है उतना अन्य पुराणों के विषय में नहीं। लोग इसकी कया
(6) अधदश पुराणानि पुराणनाः प्रचक्षते । प्राय पाप पैशवंच शैवं भागवत तथा ॥ प्रधान्यनारदीयं च माकण्डेयं च सनर्म। भाग्य मटन चैत्र भविष्य नव तया ॥ दश मब वैवर्त लैंगमेकादशं स्मृतम् । धाराएं द्वादशं चैव स्वान्दं चारप्रयोदशन ॥ चतुर्दशं वामनंच को पदशं स्मृतम् मात्स्यं च गारुडं चैव प्रमाण्ड चतत. परन् ॥ [विष्णु पुराण ३ घंश ०६]
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