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________________ साहचर्य बुध और भौम के परस्पर साहचर्य से है । । विरोध यथा 1 यथा 2. "रामार्जुनव्यतिकर: साम्प्रतं वर्तते तयो: " यहां परस्पर विरोध से भार्गव व कार्तवीर्य का ज्ञान हो रहा है। 2 3. - अर्थ - ( प्रयोजन ) - यथा प्रयोजन से अश्व का ज्ञान हो रहा है। 3 - 5. यथा * बुधो भौमश्च तस्थो च्चैरनुकूलत्वमागतो" यहाँ विशेष का ज्ञान हो रहा - - पकरप "अस्माद्भाग्यविपर्ययाद्यदि पुनर्देवो न जानाति तम्" यहाँ प्रकरण ते अनेकार्थक देव शब्द युष्मद् (आप) अर्थ में नियंत्रित है। प्रकरण शब्द रहित होता है और अर्थ (प्रयोजन) शब्दवान्, यही इन दोनों में अन्तर है। 4 1. वही, पृ.64 वही, पृ. 64 वही, पृ. 64 4. वही, पृ. 64 वही, प. 64 ग्रह - 86 - लिंग (चिह्न) - यथा - "कोदण्डं यस्य गाण्डीवं स्पर्धेत कस्तमर्जुनम्" यहां गांडीव इस लिंग (चिह्न) से अर्जुन का ज्ञान हो रहा है। 5 "सैन्धवमानय, मृगयां चरिष्यामि यहां
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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