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________________ उन्होंने पुन: अतत्प्राधान्यकाव्य के चार उपभेद किए हैंक्वचित्वाच्यादनुत्कर्ष, क्वचित्परांगता और क्वचिदस्फुटता और क्वचिदतिस्फुटता।' संदिग्धप्राधान्य व तुल्य प्राधान्य के कोई उपभेद नहीं किये हैं । आ. हेमचन्द्र का काव्य-विभाजन आनन्दवर्धन और मम्मट के ही समान है, परन्तु मध्यमकाव्य के प्रभेदों में मम्मट तथा हेमचन्द्र में बहुत अंतर है। आ. हेमचन्द्र ने स्वसम्मत मध्यमकाव्य के तीन भेदों का प्रतिपादन करते हुए मम्मट सम्मत 8 भेदों का खण्डन किया है। 2 $38 व्यंग्य से रहित काव्य को हेमचन्द्र ने अवर काव्य की संज्ञा दी है3 तथा प्रायः सभी आचार्यों की भांति उन्होंने भी 1. अधमकाव्य अवर (अधम ) काव्य के दो भेद किये हैं - (1) शब्दचित्र और ( 2 ) अर्थ 4 चित्र | शब्दगत तथा अर्थगत वैचित्र्य के पृथक् पृथक् उदाहरण उन्होंने दिए 2. 76 काव्यानुशासन, 2/57, वृत्ति इति त्रयो मध्यमकाव्यभेदा न त्वष्टौ । वही, 2/57, वृत्ति 3. अव्यंग्य मवरम् 4. ast, 2/58 शब्दार्थवैचित्र्यमात्रं व्यंग्य रहितं अवरं काव्यम्। वहा, 2 / 58 वृत्ति -
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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