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का पात्र मुझे सर्वदा समझा ।
इस प्रसंग में, मैं अपने समस्त गुरूजनों की भी ह्रदय ते कृतज्ञ हूँ
जिनकी सद्भावना व स्नेह मेरे अवलम्ब रहे।
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मुझे अपने मित्रों से सदा इस कार्य को सम्पन्न करने हेतु प्रेरणा तथा उत्साह प्राप्त होता रहा, जिसकी अभिलाषा मुझे सर्वदा ही रहेगी।
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी के निदेशक आदरणीय डा. सागरमल जी जैन व अधिकारियों तथा केन्द्रीय पुस्तकालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के अधिकारियों की भी मैं आभारी हूँ, जिनकी कृपा से अनेक ग्रन्थों के अवलोकन तथा उपयोग करने की सुविधा मिली।
इलाहाबाद
दि. - 9.7.1992
रश्मि पन्त