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बेमेन्द्र ने "औचित्य को ही काव्य का प्राप" कहा।
इन तमस्त लक्षणों का समन्वित रूप आचार्य मम्मट के काव्य-स्वरूप दृष्टिगत होता है। काव्य-स्वरूप निरूपण करते उन्होंने लिखा कि - ( काव्यत्व विघातक) दोष रहित, (माधुर्यादि) गुण सहित तथा कहीं-कहीं स्फुट) अलंकार रहित साधारणत: अलंकार सहित शब्द तथा अर्थ समूह काव्य हैं।' इस लक्षण में आचार्य मम्मट ने शब्दार्थयुगल के "अदोषों" "सगुपौ आदि विशेषण प्रस्तुत करके निश्चय ही श्लाघनीय कार्य किया है। उनका काव्य लक्षण सामाजिक तथा कवि दोनों की दृष्टि से पूर्ण है, कृति तथा अनुभूति ते सम्बन्ध रखने वाला है। इसमें अलंकारवादी, रीतिवादी, वक्रोक्तिकार व ध्वनिवादी सभी सम्प्रदायों के काव्यलक्षण आ मिलते हैं। सरस्वतीकण्ठाभरण के 'निर्दोष गुणवत.' आदि का स्वरूप के साथ इसका अत्यधिक साम्य है। यद्यपि साहित्यदर्पणकार तथा पण्डितराज जगन्नाथ ने इसकी कटु आलोचना अवश्य की है, किन्तु वे इससे अधिक व्यापक तथा सर्वग्राह्य काव्य
न दे सके। वस्तुत: काव्य तो लोकोत्तर- वर्षना निपुण कविकर्म है। उसे लक्षण
1. तददोषी शब्दार्थो सगुपावनलइ. कृती पुनः क्वापि ।।
काव्यप्रकाश 1/4
वाक्यं रसात्मकं काव्यस "साहित्यदर्पण 1 / 3
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रमणीयार्थप्रतिपादक: शब्द: काव्यम् 1 रसंगाधर (काव्यमाला) पृ. 4-5
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लक्षण