________________
41
चतुर्थ अध्याय में, चित्र, प्रलेष, अनुप्रास, वक्रोक्ति, यमक तथा पुनरूक्तवदाभास नामक शब्दालंकारों का भेद - प्रभेद सहित विवेचन है।
पंचम अध्याय में, सर्वप्रथम नव रतों का तांगोपांग निरूपप है । तत्पश्चात रस-दोष, नायक के धीरोदात्तादि चार भेद, धीरललित के अनुकूल, पाठ, पृष्ठ तथा दक्षिप नामक चार प्रद, नायक के गुप, नायिकाभेद, स्त्री की आठ अवस्थाएँ, दस कामावस्थाएँ तथा कालादि-औचित्यों का
विवेचन किया गया है।