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________________ 383 नाट्य वृत्तियां : यद्यपि वृत्ति शब्द का प्रयोग विविध अर्थों मे किया जाता है, किन्तु काव्यशास्त्र में यह विशिष्ट अर्थ का वाचक है। यहां - यह तीन विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त होता है • प्रथम शब्दशक्ति में अर्थात अभिधा, लक्षणा, तात्पर्या और व्यंजना के रूप में, द्वितीय उपनागरिका परुषा व कोमला नामक अनुपात के प्रकारों के लिये तथा तृतीय कैशिकी, आरभटी, भारती व सात्त्वती आदि नाट्यवृत्तियों के लिए होता है। प्रस्तुत में नाट्यवृत्तियों को ही ध्यान में रखकर इनका विवेचन किया जा रहा है। नाट्य प्रयोग की दृष्टि से नायक-नायिकादि पात्रों की कायिक, वाचिक व मानसिक व्यापाररूप चेष्टा ही "वृत्ति" रूप में विवक्षित है। नाट्यवृत्तियों की उत्पत्ति : भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में इन वृत्तियों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में कथित है कि भगवान विष्णु नागशय्या पर शयन कर रहे थे। तदनन्तर शक्ति के मद में उन्मत्त मधु व कैटभ नामक असुरों ने विष्णु को युद्ध मैं ललकारा। उस समय असुरों के विनाश हेतु जिन चेष्टा - विशेषों का प्रदर्शन किया गया उन्हीं ते वृत्तियों की उत्पत्ति ' हुई। सर्वप्रथम विष्णु के द्वारा भूमि पर बलपूर्वक पैर रखने ते जब भूमि 1. नाट्यशास्त्र, 22/11-14
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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