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________________ 337 इसप्रकार आ. हेमचन्द्र ने 29 प्रकार के अर्थालंकारों का सोदाहरण प्रतिपादन किया है। अलंकार विवेचन में भी पूर्ववर्ती आचार्यो का पर्याप्त प्रभाव देखा जा सकता है। आ. हेमचन्द्र ने किसी आचार्य विशेष को पूर्ण मान्यता नहीं दी है, अपितु जिस आचार्य की जो उक्ति उचित समझी है उसे तर्क की कसौटी पर कतकर स्वीकार किया है। अलंकार विवेचन के सन्दर्भ में उनकी कसौटी यह है कि कुछ अलंकारों का अन्तर्भाव हो जाता है, कुछ अलंकार दोषाभाव रूप हैं और कुछ अलंकार कहलाने योग्य ही नहीं हैं। इसी कसौटी पर उनका अलंकार विवेचन आधारित है। आ. मम्मट सम्मत अधिकांश अलंकारों को आ. हेमचन्द्र ने छोड़ दिया है, उनपर कोई विचार ही नहीं किया है। छोटे अथवा कम महत्व के अलंकारों को महत्वपूर्ण अलंकारों में समाविष्ट कर लिया है। रस तथा भाव से संबंधित रसवत्, प्रेयस, उत्वित और समाहित अलंकारों को मम्मट की भांति छोड़ दिया है। उन्होंने स्वभावोक्ति के लिए जाति तथा अप्रस्तुतप्रशंसा के लिये अन्योक्ति शब्द का प्रयोग किया है। विवेक टीका में उन्होंने सरस्वतीकण्ठाभरपकार भोज एवं अन्य अलंकारिकों द्वारा निर्दिष्ट सभी अलंकारो की चर्चा की है और कुछ अलंकारों को स्वीकृत अलंकारों में समाविष्ट कर लिया है या कुठ को अलंकार ही नहीं माना है।' हेमचन्द्र की अपेक्षा मम्मट ने जिन अलंकारो को अधिक कहा है वे निम्नलिखित हैं - 1. काव्यानुशासन, टीका, पृ. 405
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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