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________________ 333 स्तविक विरोध न होने पर भी पारस्परिक विरोध का आभास मात्र होना विरोध अलंकार माना है। मम्मट ने इसप्रकार इसके 10 भेद सम्भव बतलाये हैं।। ।। सहोक्ति - “सहार्थबलादमत्यान्वयः सहोक्ति:" अर्थात सह अर्थ के सामर्थ्य ते धर्म का अन्वय सहोक्ति है। आशय यह है कि जहाँ सह शब्द के अर्थ की सामर्थ्य से एक पद दो का वाचक हो वह सहोक्ति 8128 समासोक्ति - "पिलष्टविशेषरूपमानधीः समासोक्तिः" अर्थात शिलष्ट विशेषपों के द्वारा उपमान का कथन समास अर्थात संक्षप से प्रकृत और अप्रकृत दोनों का म्यन होने से समाप्तोक्ति कहलाता है। मम्मट और हेमचन्द्र दोनो आचार्यों का समातो क्ति का स्वरूप समान है।2 8138 जाति - "स्वभावाख्यानं जाति:' अर्थात स्वभाव का कथन करना जाति है। यह स्वभावोक्ति का ही पुराना नाम है। मम्म्ट ने इसे स्वभावोक्ति ही कहा है। मम्मट के स्वभावो क्ति और आचार्य हेमचन्द्र के जाति अलंकार में समानता है। हैं 14 व्याजस्तुति - "स्तुतिनिन्दयोरन्यपरता व्याजस्तुति:' अर्थात स्तुति और निन्दा की अन्यपरता व्याजस्तुति है। स्तुति का 1. वही, 10/166 2 तुलनीय - परोक्तिर्भेदकैः श्लिष्टै: समासोक्तिः। वही, 10/147
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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