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"वाग्भटालंकार" पाँच परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें कुल मिलाकर 260 पद्य हैं। अधिकांश पथ अनुष्टुप में हैं। परिच्छेद के अंत में कतिपय अन्य छंदों में रचे गये हैं।
प्रथम परिच्छेद में, मंगलाचरण के पश्चात् काव्य-स्वरूप, काव्य-प्रयोजन, काव्यहेतु, काव्य में अर्थ-स्फूर्ति के पांच हेतु - मानसिक आह्लाद नवनवोन्मेषशालिनी बुद्धि, प्रभातवेला, काव्य-रचना में अभिनिवेश तथा समस्त शास्त्रों का अनुशीलन आदि का निरूपण किया गया है। तदनन्तर कवि समय का वर्णन किया गया है, इसके अन्तर्गत लोकों व दिशाओं की संख्या निर्धारण, यमक, श्लेष एवं चित्रबन्ध के अनुस्वार तथा विसर्ग की छूट आदि का सोदाहरण वर्णन किया गया है।
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द्वितीय परिच्छेद में, काव्य शरीर निरूपप के अनंतर काव्य की रचना इन चार भाषाओं में की जा सकती है,
संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा भूतभाषा यह वर्णित है। काव्य के छन्द - निबद्ध तथा गंध निबदु - ये दो तथा गद्य, पय एवं मिश्र ये तीन प्रकार के भेद किये गये हैं। इसके बाद पद और वाक्य के आठ दोर्षों के लक्षण का उदाहरणों के साथ विवेचन करके अर्थ - दोषों का निरूपणं किया गया है।
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तृतीय परिच्छेद में, औदार्य, समतादि दस काव्यगुणों का सोदाहरण लक्षण प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि वाग्मटालंकार में सर्वत्र पद्यों का प्रयोग किया