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व्यभिचारिभाव का समावेश वृत्ति में मिया गया है।
रामचन्द्र-गुपचन्द्र अद्भुत रस की उत्पत्ति दिव्य विभूतियों इन्द्रजाल अथवा सुन्दर वस्तुओं के दर्शन तथा अभीष्ट सिद्धि से मानते हैं। 2 नयन - विस्तार, गद्गद् वचन, गात्र - वेपथु, - कम्पनादि अनुभावों ते ये अभिनय होता है। आवेग, जड़ता, संभम, चपलता, उन्माद, रोमांचा दि इसके व्य भिवारिभाव होते हैं।
नरेन्द्रप्रभतरि का अद्भुत - रस - विवेचन हेमचन्द्र के ही समान है' व वाग्भट द्वितीय का विवेचन भी हेमचन्द्र से प्रभावित है।
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शान्त रस : शान्तरस बहुत विवादास्पद है। नाट्य में इसकी सत्ता को तो स्वीकार ही नहीं किया जाता। इसलिये भरतमुनि द्वारा कथित आठ रतों को गिनकर आचार्य मम्मट ने इसकी गपना अलग से की है। धनंजय तो शान्तरस को मानते ही नहीं है। आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, मम्मट आदि आचार्यों ने काव्य में शान्तरस की सत्ता को स्वीकार किया है। शान्तरस
I. काव्यानुशासन, वृत्ति, पृ. ।।9-20 2. हि. नाट्यदर्पप, 3/19 3 वही, विवरप, पृ. 316 4. दिव्यरूपावलोकादिस्मेरो हर्षाधलंकृतः। दूरं नेत्र विकासादिकारपं विस्मयोऽभूतः।।
अलंकारमहोदधि, 3/23 5. काव्यानुशासन, वाग्भट, पृ. 57