SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 97 इसके स्पष्टीकरप हेतु निम्न तालिका द्रष्टव्य है -- ध्वनि संलक्ष्यक्रमव्यंग्य असंलक्ष्यकमव्यंग्य (पद,वाक्य, प्रबन्ध, पदान्त, रचना व वर्ष के भेद ते 6 भेद ) शब्दशक्तिमल अर्थशक्तिमल उभयशक्तिमल (वाक्य में केवल एक भेद - - - - अलकार कान्तवाच्य ।अर्थान्तरसंक्रान्तवाच्य स्वत:दि कविप्रोटोक्तिसिद रस्कृतवाच्य अत्यन्ततिरस्कृतवाच्य पद और वाक्य दोनों में (4 x 2 = 8 भेद) अलंकार वस्त । वस्तु से वस्तु । अलंकार से अलंकार 2 वस्तु से अलंकार 2 अलंकार से वस्तु अलंकार । वस्तु से वस्तु । अलंकार से अलंकार 2 अलंकार से अलंकार 2 अलंकार से वस्तु प्रत्येक के पद, वाक्य और प्रबन्धगत भी (8x3 = 24 भेद) संलक्ष्यक्रमव्यंग्य भेद - 33 असंलक्ष्यक्रमव्यंग्यभेद - 6 + 9 भेद संसृष्टि 39 के साथ 39 की, 39 x 39 - 1521 संकर तीन प्रकार का, 1521 x 3 = 4563 6084 मिश्रित भेद + 39 शुदभेद
SR No.010447
Book TitlePramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRashmi Pant
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy