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पढ़नेसे विदित होगी । जबसे जैन राजाओंने धर्मकी शरण छोड़ी और संसार वासनाके वशीभूत हुए तबसे ही उनकी श्रद्धा शिथिल हो गई । इस शिथिलता अवसरको पाकर अजैन धर्मगुरुओंने उन्हें अपना अनुयायी बना लिया और उनहींके द्वारा बहुत कुछ जैन धर्मको हानि पहुंचाई गई - राजा के साथ बहुत प्रजा भी अजैन हो गई । उदाहरण - कलचूरी वंशज जैन राजा बज्जालका है जिसको सन् १९६१-११८४ के मध्यमें वासव मंत्रीने शिख धर्मी बनाया और लिंगायत पंथ चलाया। इससे लाखों जेनी लिंगायत हो गए देखो ष्टष्ट ११३ || इस कारण बहुतसे जैन मंदिर शिव मंदिरमें बदल दिये गए जिसके उदाहरण पुस्तक पढ़नेसे विदित होंगे ! जेन राजागगोंने बहुतसे सुन्दर २ जैन मंदिर निर्मापित कराए और उनके लिये भूका संकेत पुस्तकले मिलेगा। तथा दोरा वंशी अनेक कूट सी जैन राजाओं राज्य किया है। गुजरात में
काकी, राष्ट्र
राजा ने धर्म मानेवाले हुए हैं। गुजरात और दक्षिण बहुत सोलंकी वंशधारी गुरुराज लेकर देव (सन ९६१ से १३०४) तक जो राजा हुए वे प्रायः सव ही जैन धर्मवारी थे इनमें सिद्धराज और कुमारपाल प्रसिद्ध हुए हैं । वेदराबाद में एलूरा गुफाके जैन मंदिर व बीजापुर में ऐहोली और बादामीकी जैन गुफाएं दर्शनीय हैं - शिल्पकलाका भी उनमें बहुत महत्त्व है
मुसलमानोंने बल पकड़कर कितने जैन मंदिरोंको मसजिदोंमें बदला यह बात भी पुस्तकसे मालूम पड़ेगी ।