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________________ मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । इस हरएकमें नग्न मूर्तियां कृष्ण या श्वेत संगमर्मरकी थीं । द्वारके सामने दो बड़े आकारफे काले संगमर्मरके हाथी थे इनमेंसे एकपर शांतिदासकी मूर्ति बनी थी। १६४४ से ४६ के मध्यमें औरङ्गजेबने मंदिरको नष्ट किया, मूर्तियोंको तोड़ डाला व इस मंदिरको मसजिदमें बदल दिया। इस बातसे दुःखित होकर जैनियोंने बादशाह शाहजहांको प्रार्थना की जो औरङ्गजेबके इस कृत्यसे बहुत अप्रसन्न हुआ, तब बादशाहने आज्ञा दी कि इसको मंदिरकी दशामें ही पलट दिया जावे । अब भी वहां जैन मूर्तियें मिलती हैं यद्यपि उनकी नाक भंग है। भीतोंपर मनुष्य व पशुओंके चित्र हैं । शांतिदासने खास मूर्तिको वहांसे बचाकर नगरमें रक्खा और इसलिये जौहरीबाड़ामें एक दूसरा मंदिर बनवाया । ___अहमदावाद जैनियोंका मुख्य स्थान है । १२० जन मंदिरोंसे अधिक हैं जिनमें हाथीमिंहके मंदिरके सिवाय १८ प्रसिद्ध हैं, १२ मंदिर दर्यापुर, ४ खांदीनत व २ जमालपुरमें हैं। "Arechetcture of Ahmedabad by Hore and Fergusson 1866." में नीचेका कथन है । पृष्ठ ६९ में है कि-..... ईसाकी प्रथम शताब्दीसे अबतक गुजरातवामी भारतवर्षभरकी जातियोंमेंसे एक बहुत उपयोगी, व्यापारी और समृद्धिशाली समाज है। कृषि कर्ममें भी वे इतने ही परिश्रमी हैं, जितने ही वे युद्ध में वीर हैं तथा स्वतंत्रता रखनेमें देशभक्त हैं । उनकी चित्रकला भी सदा पवित्र और सुन्दर रही है । तथा इन लोगोंका धर्म भी जैन धर्म है। यह सच है कि इस प्रांतमें विष्णु और शिवकी पूजाकी भी अज्ञानता नहीं रही है तथा बहुत समय तक बौद्धमत भी इसकी
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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