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________________ २०४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। वंशका गौरव था । इसने अपना राज्य काठियावाड और कच्छ पर बढ़ाया था । दक्षिण गुजरात या लाड़के राजा बारप्पासे तथा अनमेरके राजा विग्रहराजसे युद्ध किया था। अजमेरके राजाओंको सपादलक्ष कहते थे । अजमेरका नाम मेहर लोगोंसे पडा है जिन्होंने ५वीं व ६ठी शताब्दीके मध्यमें वहां राज्य किया था। हम्मीरकाव्यमें प्रथम अजमेरका राजा चौहान वासुदेव सन् ७८०में था। इससे चौथा राजा अजयपाल ( ११७४-- ११७७ ) व १० वां विग्रह राज था। मूलरानने अनहिलवाडामें एक जैनमंदिर बनवाया जिसको मूलवस्तिका कहते हैं । इसने कुछ शिवमंदिर भी बनवाए थे। मूलरानने अपना बहुतमा समय सिहपुरके पवित्र मंदिरमें बिताया था जो अनहिलवाड़ासे उत्तरपूर्व १५ मील है। (२) चामुड़-मूलरानका पुत्र (मन ९९७-- १ ० १ ०) दूसरा राना हुआ । यह यात्रा करने बनारमकी तरफ गया था। मार्गमें मालवाके राना मुंजने युद्ध किया (सन् १ ० १ १) और इसका छत्र लेलिया तब यह छत्ररहित साधारण त्यागीके रूपमें यात्राको गया। मुंजके पीछे मालवामें राजा भोजने (मन १०१४) तक राज्य किया। (३) दुर्लभ-(१०१०-१ ०२२) चामुंडका पुत्र इमको जगत झंपक भी कहते थे । इमने दुर्लभ सगेवर बनवाया था। (४) भीम प्रथम-(सन् १ ०२२-१०६४) यह दुर्लभका भतीजा था । यह बहुत बलवान था । भीमने सिंध और चेदी या बुन्देलखण्डके राजापर हमला किया। उसी समय मालवाके राजा भोजके सेनापति कुलचन्द्रने अनहिलवाड़ापर हमला किया और
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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