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गुजरातका इतिहास
[ २०१ कहता है कि अमोघवर्ष शाका ७९९ व सन् ८७७में जीवित था।
ध्रुवके पीछे उसके पुत्र अकालवर्षने राज्य किया । जिसका नाम शुभतुंग भी था फिर उसके पुत्र ध्रुवहिने फिर दंतिर्वमनके पुत्र अकालवर्ष, कृष्णने राज्य किया । इसी समय मान्यखेडमें राष्ट्रकूट अमोघवर्ष राज्य कर रहे थे जिन्होंने ६३ वर्ष राज्य किया । अब गुजरात राष्ट्रकूट वंश समाप्त हुआ, परंतु मान्यखेडके मुख्य वंश रप्टकूटने फिर सन् ९१४में दक्षिण गुजरातमें आधिपत्य जमाया । जैसा नौसारीके दो ताम्रपत्रोंसे प्रगट है। जिसमें यह कथन है कि कृष्ण अकालवर्ष के पोने व जगतुंगके पुत्र गजा नित्यमर्ष इन्द्रने लाड़ देशमें नौमार्गके पास कुछ ग्राम दान किये । (B. R. A S. XVIII ,
मान्यखेड़के अमोघवर्ष के पीछे अकालव ने ८८. मे ९, तक राज्य किया । मालम होता है कि इस दक्षिणी रणने गुन रातको लेलिया था. क्योंकि इस ममयसे दक्षिण गुजरातको जो लाडके नामसे कहलाता था दक्षिण राष्ट्रकूटमें सदाके लिये शामिल कर लिया गया। शाका ८३२ का कपड़वंजका एक दानपत्र मिला है (ED. IN ID: जिसमें लेख है कि महा सामंत कृष्ण अकालवर्ष प्रचंडके सेनापति चंद्रगुप्तके अधिकारमें प्रांतिनके पास हर्षपुर या हर्मोल पर खेड़ा जिलेमें ७५० ग्राम थे ।
सन् ९७२में गुजरात पश्चिमी चालुक्य राजा तैलप्पाके अधिकारमें चला गया जिसने वारप्पा या द्वारप्पाको मौंप दिया था । इसका युद्ध सोलंकी मूलरान अनहिलवाड़ा (९६१-९९७) के साथ हुआ था।