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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
पुत्र नरसिंहगुप्त, फिर उसके पुत्र कुमारगुप्त द्वि० ने राज्य किया। __ यशोधर्मन-सन ५३३-३४ मालवाका। इसने मिहिरकुलको हरा दिया था तो भी ग्वालियरका राजा मिहिरकुल रहा था (यूनानी व्यापारी कोसमस इंडीकोव बुस्तेने सन ५२० में उत्तर भारतमें इसका राज्य मालूम किया था) यशोधर्मनका राज्यस्थान मंदसोर था।
देखो - Fit et itorps Its. Ind III.
इसने ब्रह्मपुत्रमे महेंद्रगिरि तक व हिमालयासे दक्षिणममुद्र तक विजय किया था। छटी शताब्दीमें उज्जैनमें एक प्रसिद्ध वंश गज्य करता था ! यगोधर्मन म्वयं महान विक्रमाढत्य था।
बल्लभी वंश-मन् ५०९-७६६)-गुजरातमें गुमोंके पीछे बल्लभी बंशने राज्य किया। इनका राज्यस्थान वलेह या वल्लभी था जो भावनगरले पश्चिम २० मील है और शठंजय पर्वतमे उत्तर २५ मील है।
दो मी मिनप्रभसारिकृत संजयकल्पमें जो नेरहवीं शताब्दी में लिखा गया था इसका नाम वल्लभी आया है व प्रांतका नाम बलाहक है। (म० नोट यहीं ९ : ० वीर मम्बतमें इवे० आचार्य देवढिगणिने नांवरी लोगोंमें पाए जानेवाले आचागंग आदि अंगोंकी रचना की थी. इसलिए वर्तमान पाए जानेवाले श्वेताम्बरी अंग प्राचीन लिखित मूल अंग नहीं है।) चीन यात्री हुईनमांग मन ६४० में लिखता है कि इस समय यह एक नगर बड़ा धनवान व जन संग्व्यासे पूर्ण था । करोड़पति मौ से ऊपर थे (Over liuarrest merchant s owned 100 lack)। ६००० साधुओंके बहुतसे संघाश्रम थे। राजा यहांका क्षत्री था जो मालवाके शिलादित्यका