SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ A NNA १२४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । नं० १-५१ लाईन तक है। गंगवंशीय मारसिंहदेव सत्त्यवाक्य कोंगनीवर्मा अर्थात् गंगकदर्पने शाका ८९० में विभवसंवत्सरमें जैन गुरु जयदेवके पुलिगेरी (लक्ष्मेश्वरका पुराना नाम) शहरके भीतरकी कुछ जमीने राजा गंगकंदर्प (स्वयं) द्वारा निर्मित या जीर्णोद्धारित श्री जिनेन्द्रके जैन मन्दिरकी सेवाके लिये दीं। वंशावली इस तरह दी है माधव कोंगनीवर्मा या माधव प्रथम माधव द्वि० मारसिंह हरिवर्मा नं० २-५१ लासे ६१ तक-सेन्द्र वंशका लेख । इस लेखमें चालुक्य राजा रणपराक्रमांक और उसके पुत्र एरय्याका वर्णन है। तब राजा सत्त्याश्रयका कथन है फिर राजा सत्याश्रयका समकालीन राजा दुर्गाशक्ति था। जो भुजेन्द्र या नागवंशकी शाखा सेन्द्रवंशमें प्रसिद्ध विनयशक्तिके पुत्र कुन्दशक्तिका पुत्र था । . राजा दुर्गाशक्तिने जिनेन्द्रके मंदिरके लिये पुलिगेरीमें भूमिदान दी। नं० ३-६१से अन्ततक-यह पश्चिमीय चालुक्य वंशीय विक्रमादित्य द्वि० (शाका ६५६) का लेख है जो इसने रक्तपुर अपने विनयस्थलसे प्रसिद्ध किया । इसमें कथन है कि पुलिगेरीके संखतीर्थ वस्तीका जीर्णोद्धार कराया व जिनपूजाके लिये कुछ भूमि दान की।
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy