________________
१०२] मंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक।
३७३० तीन हजार सातसो तीस वर्ष भारतोंके युद्धके वीतनेपर व ३५५० तीनहजार पांचसौ पचास वर्ष कलियुगके जानेपर और शक राजाओंके ५०६ पांचसौ छः वर्ष होनेपर महिमापूर्ण यह पाषाणका मिनेन्द्रमंदिर विद्वान रविकीर्ति द्वारा निर्मापित किया गया था। जिस रविकीर्तिने उस सत्याश्रयके महान प्रसादको प्राप्त किया था जिसकी आज्ञा मात्र तीन समुद्रोंसे ही रोकी गई थी।
इस तीन जगतके गुरुश्री जिनेन्द्र मंदिर की प्रशस्तिका लेखक तथा जिसने इस मंदिरको निर्मापित कराया वह यह स्वयं रविकीर्ति है। वह रविकीर्ति विजयको प्राप्त करे, जिसने अपनी कवितासे कालिदास और भैरवीकेसे यशको प्राप्त किया है व जो कार्यके करनेमें विवेकी है व जिसने यह महान जिनमंदिर बनवाया है ।
लेखके नीचे जो कनड़ी भाषामें है उसका उल्था ।
मुश्रीवल्लीका ग्राम, भेलटिकवाड नगर तथा पर्वनूर, गंगबूर, पूलिगिरि और गंडव ग्राम इस देवताकी सम्पत्ति हैं। उत्तर और दक्षिणकी तरफ इस पर्वतके नीचे दक्षिण भीमवारी तक इस महापथांतपुर नगरकी सीमा है।
इस मेघुती मंदिरके ऊपरी भागके आंगनमें एक स्मारक पाषाण है जिसमें एक छोटासा लेख पुराने कनडी अक्षरों में है । इसके अक्षर १२वीं व १३वीं शताब्दीके हैं। जिसका भाव यह है कि यह रामशेठीकी निषिधिका है जो मूलसंघ बलात्कारगणके कमल थे व ऐमसेठीके पुत्र थे जो दुगलगड़ ग्राम वासी व रामवरग जिलेके संरक्षित व्यापारी थे।