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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
गए थे । नगरको दग्ध करनेवाले शिवके समान उसने जब उस नगरको जो कि पश्चिम समुद्रकी लक्ष्मीदेवीके समान था मदोन्मत्त हाथियोंके समान सैकड़ों जहाजोंसे घेर लिया तब वह आकाश जो नए विकसित कमलके समान नील वर्ण था व मेघोंसे घिरा हुआ था समुद्रके समान हो गया और समुद्र आकाशके समान हो गया।
उसके प्रभावसे पराजित होकर लाट, मालव और गुर्जर ऐसे योग्य आचरणवाले हो गए, जिसतरह दंडसे वशीभूत सामन्त लोग हों । राजा हर्षके चरणकमल उसकी अपरिमित विभूतिसे पाले हुए सामन्तोंके रत्नोंकी किरणोंसे ढके हुए थे जब युद्धमें उसके बलवान हाथियोंकी सेना इससे मारी गई तब उसका हर्ष भयमें परिणत हो गया ।
जब वह पृथ्वीको अपनी बड़ी सेनाओंसे शासित कर रहा था तब रेवा (नदी) जो विन्ध्याचलके निकट है व जिसके तट वालूसे शोभित हैं उसके प्रभावसे अधिक शोभायमान होगई । यद्यपि पर्वतोंके महत्व को देखकर उसके हाथियोंने ईर्षासे उस नदी के संगको छोड़ दिया था ।
इन्द्र तुल्य तीन शक्तियोंको रखनेवाले उस राजाने अपने उच्च कुल आदिक गुणोंके समुदायसे तीन देशोंपर अपना अधिकार प्राप्त किया था जिनको महाराष्ट्रक कहते हैं जिसमें ९९००० निनानवे हजार ग्राम थे । कलिंग और कौशल देशवासी - जो गृहस्थोंके उत्तम गुणोंसे संयुक्त हो त्रिवर्ग साधनमें प्रसिद्ध थे और जिन्होंने दूसरे राजाओंका मान भंग किया था- इस राजाकी सेनासे तभयभी थे । उसके द्वारा वशीभूत हो पिष्ठपुरका किला दुर्गम न