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मध्य भारत।
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यह वि० सं० ११४५ या सन् १०८८ का है। यह लेख बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसका सम्बन्ध दूसरे लेखोंसे है।
(Conningham A. S. R. XX P, 99 & Epigraphica Indica I P. 237).
नकल लेख दुवकुंड । Ep. I. Vol, II P. 37. Dubkund (Gwalior) Jain Temples.
(१) ओं नमो वीतरागाय । आ-द्रन्टि-टना ( उत्पा) दपीठं लुठन्म (दा) रख गर्म (द) गुंज (द) लि (म) निष्ठ्यूत साराविणम् (त) (२) (त्पा) वह (चः) रसु--, (तां)
हे (ग) मिवाकरोत्स ऋषभ स्वामी श्रियेस्तात्सता (म्)। विभ्रा-(३) णोगुण संहति हततमस्तापो निज ज्योतिषा, युक्तात्मापि जगति संगत जयश्चक्रे सरागाणि यः उन्माद्यन्म-(४) करध्वजोर्जितगजग्रासोल्लसत्केसरी संसारोग्रगदच्छिदेस्तु स मम श्रीशान्तिनाथो जिनः ॥ जाइयं सस्वखंडित-(५) क्षयमपि क्षीणाखिलोपक्ष यं साक्षादीक्षितमक्षिभिर्दधदपि प्रौदं कलंकं तथा । चिन्हत्त्वाद्यदुपांतमाप्य मततं जात (६) स्तथा ? नंदरुञ्चन्द्रः सर्वजनस्य पातु विपद-: 'श्चन्द्रप्रभोऽर्हन्स नः। शोकानोकहसंकुलं रतितृणश्रेणि प्रणश्यभ्रम (७) त्माध्वगपूगमुद्गतमहामिथ्यात्त्ववातध्वनि । यो रागादिमृगोपघातकृतधीOनाग्निना भस्मसाद भावं कर्म (८) वनं निनायजयतात्सोयं जिनः सन्मतिः।। प्रसाधितार्थगुर्भव्यपंकजाकर ( भास्करः)। अंतस्तमोपहो वोस्तु गो-(९) तमो मुनिसत्तमः॥ श्रीमजिनाधिपति सद्वदनारविंद मुद्गच्छदच्छतरवोध समृद्धगंधम् । अध्यास्य या जंगति