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(६) रामायणमें इन राजाओंको पुछल्लेबन्दर ही कहा है, पर जैन पुराणानुसार ये राजा बन्दर नहीं थे, किन्तु उनकी ध्वनाओंपर बानरका चिन्ह होनेसे वे बानरवंशी कहलाते थे । उनकी सभ्यता बढ़ी चढ़ी थी और वे राजनीति, युद्धनीति आदिमें कुशल थे। वे जैन धर्मका पालन करते थे। इन्ही राजाओंकी सहायतासे रामचन्द्र रावणको परास्त करनेमें सफलीभूत होसके थे।
कुछ खोनों और अनुमानोंपरसे आजकल कुछ विद्वानोंका यह भी मत है कि रावणका राज्य इसी प्रान्तके अन्तर्गत था । इसका समर्थन इस प्रान्तसे सम्बन्ध रखनेवाली एक पौराणिक कथासे भी होता है । महाभारत और विष्णुपुराणमें यहांक एक बड़े योगी नरेशका उल्लेख है । इनका नाम था कार्तवीर्य व सहस्रार्जुन । इन्होंने अनेक नप, तप और यज्ञ करके अनेक ऋद्धियां सिद्धियां प्राप्त की थीं । इनकी राजधानी नर्मदा नदीके तटपर माहिष्मती ( मंडला) थी। एकवार यह राजा अपनी स्त्रियोंके साथ नदीमें जलक्रीड़ा कर रहा था । कल्लोलमें उसने अपनी भुजाओंसे नर्मदा नदीका प्रवाह रोक दिया जिससे नदीकी धारा ठिलकर अन्यत्रसे वह निकली। प्रवाहसे नीचेकी ओर एक स्थानपर रावण शिवपूजन कर रहा था । नदीकी धारा उच्ख ल होकर वह निकलनेसे रावणकी सब पुजापनी बह ग । इसपर रावण बहुत क्रोधित हुआ और उसने कार्तवीर्यपर चढ़ाई करदी, पर कार्तवीर्यने उसे परास्तकर कैद कर लिया और बहुत समयतक अपने बंदीगृहमें रक्खा । इसका उल्लेख कालिदास कविने 'अपने रघुवंश काव्यमें इस प्रकार किया है: