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________________ १८४ ] प्राचीन जैन सारक । (१) वयाना-प्राचीन नाम श्रीपथ है। दो पुराने हिन्दू मंदिर हैं जिनको मुसल्मानोंने मसजिद बना लिया है । हरएकमें संस्कृतमें शिलालेख हैं-एकमें है सन् १०४३ जादोवंशी राजा विजयपालने यहां दक्षिण पश्चिम २ मीलपर विजयगढ़का किला बनवाया जिसको विदलगढ़ किला कहते हैं । किलेमें पुराना मंदिर है उसके लाल खंभेपर एक लेख राजा विष्णुवईनका है जो सन् ३७२में समुद्रगुप्तके आधीन था। राना विजयपाल जिसकी संतान करौलीमें राज्य करती है ११वीं शताब्दीमें महमूद गजनीके भतीजे मसूद सालारसे मारा गया। यहां जन मंदिर है जिसमें नरोलीसे निकली हुई १० दिगम्बर जैन मूर्तियां विराजित हैं, ये कूप खोदते निकली थीं। वि० सं० ११९३ है। जो चिन्ह स्पष्ट हैं उनसे झलकता है कि वे ऋषभदेव, संभवनाथ, पुष्पदंत, विमलनाथ, कुंथनाथ, अरहनाथ, नेमिनाथकी मूर्तियां हैं। (२) कामा-भरतपुरसे ३६ मील उत्तर। यहां पुराना किला है। हिंदू मूर्तियोंके बहुतसे. खण्ड एक मसमिदमें हैं जिसे चौरासी खंभा कहते हैं। हरएक खंभेपर कारीगरी है । एकपर संस्कृतमें लेख है। इसमें सूरसेनोंका वर्णन है । ता० नहीं है। शायद (वीं शताब्दीका हो। एक विष्णुके मंदिर बनानेका वर्णन है। सं० नोट-यहां जैन मंदिर है व संस्कृतका प्राचीन शास्त्र भंडार है।
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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