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________________ ~ राजपूताना। [ १४७ (१५) कैलवाडा-नि० कुम्भलगढ़ । किलेके नीचे २ जैन मंदिर हैं, उनमें १ बड़ा है जिसमें २४ देहरी हैं जो कुम्भलगढके किलेके समयमें बनी हैं। (१६) नादलाई-एक पहाड़ी किला जिसको जयकाल कहते हैं । इसको जैन लोग सेव॒जय पर्वतके समान पवित्र मानते हैं । यहां सोनिगरोंके पुराने किलेके शेषांश हैं, यहां १६ मंदिर हैं जिसमें बहुतसे जैनोंके हैं । किलेके भीतर एक श्री आदिनाथनीका जैन मंदिर है, इसमें लेख है-सं० १६८८ वैशाख सुदी ( शनी महारान जगतसिंहराज्ये विजयसिंह सूरितपगच्छ-इसमें कथन है कि नदलाईके जैनोंने उस मंदिरका जीर्णोद्धार किया जिसको मूलमें अशोकके पोते राजा सम्प्रतिने बनवाया था। ग्रामके बाहर पर्वतके नीचे बहुतसे जैन मंदिर हैं जिनमें अंतिम मंदिर श्री सुपार्श्वनाथका है। इसके सभामंडपमें श्री मुनिसुव्रतकी मूर्ति है जिसमें लेख है कि नदुलाईके पोड़वाड़ नाथाकने वि० सं० १७२१में जेठ सुदी ३को अभयराजराज्ये विजयसूरि द्वारा प्रतिष्ठा कराई। ग्रामके दक्षिण पूर्व दूसरी पहाड़ी पर श्री नेमिनाथजीका जैन मंदिर है । स्तंभोंपर दो लेख हैं इसमें प्राचीन लेख सं० १२९५ का आसौज वदी १; उस समय नदुलदगिक (नदलई) में रायपालदेव राज्य करते थे तब गोहिलवंशीय उद्धारणके पुत्र राजदेवने जो रायपालदेवके आधीन था-उसकरका वीसवां भाग नदुलईके मंदिरकी पूजाके लिये दिया, जो उन लदे हुए बैलोंसे बसूल होता था जो नंदलाई होकर जाते थे । दूमरा लेख सं० १४४३ कार्तिक
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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