SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भथम भाग . (३) इनकी आयु सत्तर लाख पूर्वकी थी और शरीर साड़े चारसो धनुष ऊँचा था। (४ ये अठारह लाख पूर्व तक कुमार अवस्थामें रहे । इस समय ता ये महा भंड श्वर राजा थे। .: अठारह लाख पूर्वकी आयु हो जानेपर सगरके यहाँ चक्र'लकी उत्पत्ति हुई। (६) चक्ररत्न उत्पन्न होनेपर इन्होंने दिविजय करना प्रारंभ की और भरत चक्रवर्ती के समान दिविजय की । जितनी पृथ्वी भरतने विजय की थी और जिस प्रकार की थी उतनी ही उसी प्रकार इन्होंने भी विनय की व वृषभाचल पर्वतपर भरतके समान अपने नामकी प्रशस्ति भी लिखी। (७) इनके यहाँ भी छनवे हमार रानियों व सात सजीव और सात निर्जीव रत्न थे और नव निधिको लेकर जितनी संपत्ति और विभव मरत चक्रवर्तकि वर्णनमें कहाजाचुका है इन चक्रवतीको भी प्राप्त था। तिने चक्रवर्ती हुए है सबको संपत्ति आदि समान थी। (८ सगर चक्रवर्तीके पुत्र साठ हजार थे। (९) एक दिन श्री चतुर्मुख नामक केवलज्ञान धरीके जान कल्याण के लिये देव आये और सार भी गया । उन देवोम मगरके पूर्व भवन नित्र एक मणिकेतु नामक देव था। वह सगरसे आकर मिला और कहने लगा कि हमारी और झुम्हारी स्वर्गमें यह प्रतिज्ञा थी कि ननुप्य होनेपर
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy