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________________ ८१ प्राचीन जैन इतिहास। (३) महा शुद्धी दसमीको रोहिनी नक्षत्रमें भगवान् अजितनाथका जन्म अयोध्यामें छुआ | इनका भी जन्म कल्याणोत्सव इन्द्रों द्वारा ऋषभदेवके समान मनाया गया । ये भी जन्म समय तीन ज्ञान-मति, श्रुत, अवधिज्ञानके धारी थे । और स्वयं विना किसी के द्वारा पढ़े-ज्ञानवान थे। (४ इनकी आयु बहत्तर लाख पूर्वकी थी और शरीर साड़े चारसो धनुष ऊँचा था। (१) अठारह लाख पूर्वतक ये कुमार अवस्था में रहे और ओपन लाख पूर्वतक पृथ्वोपर राज्य किया। (६. भगवान् अजितनाथका विवाह हुआ था। (७) जब आयुमें एक लाख पूर्वका काल बाकी रह गया तम आप महलोंपर बैठे हुए आकाश देख रहे थे । इतनेहीमें आनागमे उल्कापात हुमा उसे देखकर विमलीके समान जगतको भनित्य समझ भगवान् अजितश्चने दीक्षा ली। और अपने पुत्रको राज्य दिया। (८) वैराग्यके चितवन करते ही मौकातिक देवोंने आकर भगवान् की स्तुति की। इन्द्रोने तपकल्याणक त्सव किया। जिस दिन भगवान् अजितने तर ग्रहण किया उस दिन माघ सुदी २ थी। तप धारण करते समय भगवानको चोथा मन पर्ययज्ञान उत्पन्न । (६) भगवान् अनितनाथने सहेतुक नामक बनमें सप्तपणके वृक्षक नीचे तप धारण किया था। इनके साथ एक हजार राजा. ए व चार हाथका होगा है।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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