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________________ ६.१. प्राचीन जैन इतिहास (११) चितामणी रत्न- चूड़ामणि (१७) काकिणी रत्न-चिंता जननी । (४२) भरतके सेनापतिका नाम अयोध्य, पुरोहितका नाम बुद्धिसागर, गृहपतिरत्नका नाम कामवृष्टि, सिलावट रत्नका नाम मद्रमुख, हाथीका नाम विजयपवत, घोड़ेका नाम पवनंजय था । (४३) चक्रवर्ति के वादित्रों में प्रसिद्ध प्रसिद्ध वाजे इस भँति थे । (१) आनंदिनी नामकी बारह भेरिया (२) विजयघोष नामके वारह नगाडे ( ६ गंभीरावर्त नामके चौवीस शख (४४) चक्रवर्तीकी अड़तालीस करोड़ ध्वजायें थीं । (११) चक्रवर्ति महाकल्याण नामक दिव्य भोजन करते थे। कोई न पचा सके ऐसे अमृतगर्भ नामक पदार्थका वे भक्षण करते थे । उनके स्वाद करने योग्य अमृतकल्प नामक पदार्थ थे और पोनेकी चीमोंका नाम अमृत था । (४६) भरतने अपनी लक्ष्मीका दान करनेके लिये ब्राह्मण वर्णत्री स्थापना की । अर्थात् उस समय जो व्रती श्रावक थे जिनके चित्त कोमल, धर्मरूप, और दयायुक्त थे उनका एक न्यारा ही वर्ण बनाया और उस वर्णका नाम ब्राह्मण रखा । ऐसे पुरुयोंकी परीक्षा भरतने इस प्रकार की थी कि अपने राजमहलके घोकमें दूब वगैरह घास बोदी और अपने आधीन के राज्य महाराजाओको अपने सदाचारी इष्ट, मित्र, सेवक व कर्मचारियों सहित बुलाया । इनमें से जिन लोगोंने उस दूब वगेरह वनस्पतिके उपबसे, जाना, स्वीकार नहीं किया उन लोगोंको ब्राह्मण बनाया, उनका T 1
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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