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________________ ५१ - प्राचीन जैन इतिहास | - (३०) मरत चक्रवर्तिका शरीर समचतुरस्त्रसंस्थान था अर्थात् उनके सर्व आंगोपांग यथायोग्य थे । (३१) भरत वजवृषभनाराच संहननके धारण करनेवाले थे अर्थात् उनका शरीर वज्रमय, अमेध था । (३-२) भरतके शरीर में चौंसठ शुभ लक्षण थे । (३३) भरतकी आज्ञामें बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा और . बत्तीस हजार ही देश थे । तथा अठारह हजार भार्यखंडके म्लेच्छ राजा आज्ञामें थे । 1 (३४) भरतकी छयानवे हजार रानियां थीं जिनमें बत्तीस हजार उच्च कुल जातिके मनुष्योंकी कन्याएँ थीं, नत्चीस हजार म्लेच्छोंकी कन्याएँ थीं। और बत्तीस हजार विद्याधरोंकी I L कन्याए थीं । (११) भरतका शरीर वैक्रियिक था अर्थात् वे अपने ही समान अपनी कई मूर्तियां बना लेते थे । (३६) भरतकी मुख्य रानीका नाम सुभद्रा था । (१७) महारानी सुभद्रामें इतना बल था कि वह रत्नोंको चुटकीसे चूर्ण करडालती थी और उनसे चौक पूरती थी । (३८) भरतके राज्य में बत्तीस हजार नाटक, बहत्तर हजार नगर, छयानवे करोड़ गॉव, निन्यानवे हजार द्रोणमुख ( बंदर ), अड़तालीस हजार पत्तन, सोलह हजार खेट और छप्पन अंतद्वीप थे । जहाँ के निवासी कुभोगभूमिया थे और चौदह हमार संवाह ( पर्वतों पर बसनेवाले शहर ) थे । रत्नोंके व्यापारके स्थान सातसो थे । मट्टाईस हजार बन थे ।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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