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________________ • मयम भाग हैं जिन्हें सिवा चक्रवर्तक सेनापतिके दूसरा नहीं खोल सकता । इस गुफाके खुल जानेपर चक्रवती उसमें नानेको तैयार हुमा, पर उसमें अधकार बहुत था अतएव चक्रवर्तीकी आज्ञासे पुरोहितके साथ सेनापतिने कॉकिणी और चूडामणि नामक रत्नोसे गुफाकी दोनों दीवालोंपर सूर्य और चंद्रके चित्र बनाये जिनसे प्रकाश हुआ। सूर्यके चित्रसे दिनके समान और चंद्रके चित्रसे बांदनीके समान प्रकाश होने लगा। फिर दो भागोंमें विभाजित होकर चक्रवतीकी सेना चक्रवर्ती सहित उस गुफामें चलने लगी। गुफामे सिंधु नदी बहती है अतएव सेना सिंधु नदीके दोनों किनारोंपर चलती थी। जब माधी गुफा तय हो चुकी तब चक्रवर्णने अपनी सेना ठहरा दी ! यहीपर गुफाकी दोनों दिवालोंमे दो नदियां और निकली हैं जिनका नाम निमन जला और उन्मन नला है। दोनों नदियों का स्वभाव एक दूम से विरुद्ध है। अर्थात निमनमला नदी तो प्रत्येक वस्तुओंको अपने तहमें लेनानी है और उन्नन्ननला वन्तुओंको पर ला फेंकती है। ये दोनों नदियों सिंधु नदीमें माकर मिल गई है। यहीं पर भरतने अपने डेरा दिये । और इनको पार करने के लिये अपने सिलावट रत्नको पुलं बनानेकी 'आज्ञा दी। उसने देवों के द्वारा वनोंसे लडकीके लट्टे मंगाकर उनके सो नदियों में खड़े किये और पुल बनाया, जिस परसे चक्रवतीकी सेना पार हुई। और कई दिनोंमे उस गुफाको पारकर बाहिर निकली । सेनापतिने पहिले गुफाकी दक्षिण ओरका (इस पारका) पश्चिम म्लेंच्छ खड जीता था। मरतने तरकी
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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