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________________ २९ प्राचीन जैन इतिहास। जाती हुई देखी, दूसरा स्वप्न चंद्र और सूर्य सहित मेरु पर्वत देखा, तीसरा स्वप्न कमलों सहित तालाबका था और चौथे स्वप्नमें समुद्र देखा । सुवह उठकर मह रानी यशस्वती भगवान् ऋषभके पास जाकर अपने योग्य सिहासनपर बैठी और सप्नका हाल सुनाया। भगवान् ऋषभने इन स्वप्नोंका फल चक्रवर्ती पुत्रका उत्पन्न होना बताया। (१०) चैत्र कृष्ण नवमीके दिन जब ब्रह्मयोग उत्तराषाढ नक्षत्र, मीन स्म और चंद्रमा धन राशिपर था उस समय भगवान् ऋषभदेवके पहिले पुत्रका जन्म हुआ। इस पुत्रका नाम 'भरत' रखा गया। (११) भगवान ऋषभदेवने अपने पुत्र भरतके भन्न खिलाना, मुंडन, कर्णछेदन-कानोंका छेदना और यज्ञोपवीत संस्कार किये थे। (१२) भरतके बाद भगवान के ९९ पुत्र और उत्पन्न हुए उनमें से कुछके नाम ये है.-वृषमसेन, अनंतविजय, महासेन, अनतवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर, श्रीपेण, गुणसेन, जयसेन, इत्यादि । तथा इसी स्त्रीसे-यशस्वतीदेवीसे एक कन्या और उत्पन्न हुई जिसका नाम 'ब्राह्मोसुदरी' था। (१३) भगवानकी दूसरी स्त्री सुनंदादेवीसे एक 'बाहुबली' नामक पुत्र हुआ और एक 'सुंदरीदेवी' नामक कन्या उत्पन्न हुई । भगवान् एक्सौ तीन संतानके पिता थे। (१४) एक दिन भगवानका चित्त जगत्में अनेक भिन्न भिन्न प्रकारकी कलाओं और विद्याओं के प्रचारके लिये उद्विग्न होने लगा उसी समय उनके पास उनकी दोनों कन्यायें-ब्राह्मी और
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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