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________________ २५ प्राचीन जैन इतिहास 'गंभीर आवाज करता हुआ एक बहा भारी बैल (३) सिंह (४) लक्ष्मी (५) फूलोकी दो मालाए ६) तारों सहित चंद्रमंडल (७) उदय होता हुआ सूर्य (6) कमलोंमे ढके हुए दो सुवर्णकलश (९). सरोवरों में क्रीड़ा करती हुई मछलियां (१०) एक बड़ा भारी तालाव (११) समुद्र (१२) सिहासन (१३) रत्नोंका बना हुआ विमान (१४) पृथ्वीको फाड़कर आता हुआ नागेन्द्रका भवन (१५) रत्नोंकी राशि (१६) विना थुएकी जलती हुई अग्नि । इन सोलहों स्वप्नोंके देखने के बाद एक महान् वैलको मुखमै प्रवेश करते हुए देखा । ये स्वप्न रात्रिके पिछले पहत्में देखे । सुबह उठने ही स्नान कर मरुदेवी महाराजा नामिरायके पास गई । महाराजने महारानीको अपने निकट सिंहासनपर बैठ या ! इससे ज्ञात होता है कि उस समय पर्दा नहीं या और स्त्रियों का 'पुरुष बडा सन्मान किया करते थे। (१५) महाराना नाभिरायसे महारानीने अपने स्वप्नोंका वृत्तांत कहा, तब महाराजाने अनधिज्ञानसे जानकर कहा कि तुमारे गर्भमें ऋषभदेव भाये है। आषाढ सुदी दून उत्तरापाढ नक्षत्रको ऋषभदेव महारानी मरुदेवीके गर्भमें आये १ आजकलये इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन काल में रवि, मोम भादि वारोंकी कामना नहीं थी। जैन पुगणोरे जा तिथि आदिका वर्णन है यहा नक्षत्र, योग आदि अन्य कई ज्योतिष सवधी वाते रालाई है स पार नहीं बतलाये । इन वीमान इतिहासकारों के मतको नाराण पुष्टि करते है। जैन ज्योतिषः किसी विद्वानको इसपर विचार करना नाहिये।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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