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________________ २३ भाचीन जैन इतिहास। दी और उन्होंने इस नालको काटनेकी विधि बताई। (८) हाथी के माथेपर वर्तन बनाने तथा भोजन बनाना न मानने आदिसे इस समयके लोगोंका आजकलके मनुष्य चाहें असभ्य कहें और शायद जंगली भी कह दें। और इसीपरसे ' इतिहासकार परिवर्तनके इस कालको दुनियाँका बाल्यकाल समझते हैं । पर जैन इतिहासकी दृष्टिसे उस समयके लोग आसम्य या जंगली नहीं थे। क्योंकि वह समय परिवर्तनका था। जिस तरह एक समानके मनुष्यों को दूसरी समाजके चालचलन अटपटे माल्लम होते हैं और वह उनका अच्छी तरह सपादन नहीं कर सकता उसी प्रकार भोगभूमिके समयके-ऐसे समय के जिसमें कि भोगउपभोगके पदार्थ स्वय प्राप्त होते थे-रहनेवालोंको यदि ऐसा समय प्राप्त हो जिसमें कि स्वयं मिलना बंद हो जाय तो उन्हें अपना जीवन निर्वाह करना कठिनसा हो जायगा और वे जो कुछ उपाय करेंगे वह अपूर्ण और अटपटासा होगा । ऐसा ही समय महारान नाभिरायके सन्मुख था । अतएव यह समयका प्रभाव था। इस लिये जैन इतिहास उस समयके मनुष्योंको असभ्य नहीं कह सकता 1 न वह जगतका बाल्यकाल था किंतु कर्मभूमिका बाल्यकाल था । उस समय जीवननिर्वाहके साधन बहुत ही अपूर्ण थे। (९) महाराना नामिरायकी महारानीका-स्त्रीका नाम मरुदेवी था। (१०) मरुदेवी बड़ी ही विद्वान, रुपवान् और पुण्यवान् थी।
SR No.010440
Book TitlePrachin Jain Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurajmal Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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