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प्रथम भाग |
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आभूषण, भोजन आदि प्राप्त होते रहते हैं। इनके यहां संतान ( सिर्फ एक पुत्र और एक पुत्री एक साथ ) उत्पन्न होते ही मातापिता दोनो मर जाते हैं । बालक स्वय अपने अंगूठोंको चूस चूसकर उनपचास दिनोंमें जवान हो जाते हैं । स्त्रो, पुरुष दोनों साथ मरते हैं और मरते समय स्त्रीको छींक और पुरुषको जॅभाई आती है। शरीर की ऊँचाई व मनुष्यकी आयु क्रमश. घटती जाती है।
(४) अवनति परिवर्तन के दूसरे हिस्सेका नाम सुषमा है। यह तीन कोड़कोड़ी सागरका होता है। इसमें पहिले ' हिस्सेसे शरीरकी ऊँचाई आदि घट जाती है। इस कालके मनुष्योंकी ऊँचाई सोलह हजार हाथ और आयु दो पल्पकी होती है । यह । भी क्रमशः घटती जाती है । इतनी ऊँचाई व आयु इस हिस्से के प्रारंभ में होती है । इस कालके भी मनुष्य बहुत सुंदर होते हैं । और भोजन आदि भोगोपभोगके पदार्थ कल्पवृक्षोंसे पाते है । इन I दोनों (पहिले व दूसरे ) हिस्सांमें कोई राजा महाराजा नहीं होता । सूर्य और चंद्रमाका पकाश भी कल्पवृक्षोके कारण प्रगट नहीं रहता । सिहादि क्रूर जंतुओं का भी स्वभाव शांत रहता है ।
(५) तीसरे हिस्सेका नाम सुः षमादुःषमा है । यह दो कोड़ाकोड़ी सागरका होता है । इस समयके मनुष्योंकी आयु एक पल्यकी और ऊँचाई एक कोशकी (४००० वारकी ) होती हैं । इस समय के मनुष्य एक दिन बाद भोजन करते हैं । और वह भोजन भी ऑवलेके बराबरा अवनतिका परिवर्तन होनेके कारण सब बातोंकी घटती होती जाती है । यद्यपि इतिहासका प्रारंभ