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________________ मुनार और साधु मेला राजगृहनगर में एक सुनार रहता था। वह अपने कर्म बडा ही कुशल था। राजा श्रेणिक सारी गहना गाया सीसपदवाते थे दिन भेणिकने जिन पूजाके लिये सोनेकेर फूड बनाने के लिये उसे मोना विया । सुनार जिवन्द्रा नकार बनाको फल बनाने लगा। एकदिन वह सुनार बैठा २ फूल बढ़ रहा था कितने उसने देखा कि एक साधु उ घकी ओर आहारचर्याकार लिया आरहे है। मक्तबाल सुनारने फूलोंका बढमा छोड दियो । यह दौड़ा दौड़ा गया मौ उसने साधुको भक्तिपूर्वक आहार प्रदान कि। साधु अपने सस्ने गये और सुनार अपनी दुकानपर माता किंतु दुकान पर बैठते ही उसने देखा कि एक सोनेको फूल गायब है । सारी दुकान उसने दृढ डालो परन्तु मोनेका पूर्व कहीं नहीं था । वह सोचने लगा कि 'यहा कोई भी सराबादमी नहीं पाया जो फूल ले जाता । हा, साधु जहर यहासे निकले। हो न हो सोना देखकर उनका मन डिम गया । वह ही फूल उठा ले । गये । बला, उन्हींको पकडू! दुनिया सी पावडी की। मोट लेकर लोग कैसे २ अनर्थ कन्ने है। इस माम्बडीको कामना खाना चाहिये। x “माथिया योनी' पृ० १४'पर वर्णित कथाte
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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