SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बजा ! बर माह होगा, अयोध्या में पूर्णमधु और मणिभद्र नामको रहते थे। उन्होंने एक दिन एक चाण्डाल और एक कुतियाको देखा था; नि देखकर उनके हृदयों में अकारण नेह उमड़ पड़ा था। दोनों सेठोंने ध्यानी ज्ञानी मुनिराजसे उसका कारण पूछा था और जाना 'पा कि वह चाण्डाल तथा कुतिया उनके पहले जन्मके पिता माता हैं। यह बात जानकरके दोनों सेठोंने जाकर उस चाण्डाल और कुतियाको धर्मका उपदेश दिया था, जिसके परिणामसारूप चाण्डालने प्रावकके व्रत ग्रहण किये थे। वह जैनी होगया था। कुतिया चाण्डालके साथ रहती थी। उसने देखा कि मेरा मालिक चाण्डाल अब न पशुओंको मारता है और न उनका मास खाता है तो उसने भी जानवरोंको मारना और मास म्बाना छोड़ दिया। चाण्डालकी देखादेखी कुतिया भी धर्मका अभ्यास करने लगी! निस्सन्देह सत्सं गति हो कश्याणकारिणी है। भाई अमिभूति! आखिर वह चाण्डाल समाधिमरण करक सोलहवें म्वर्गमे देव हुआ और उसकी अच्छी मंगति पाकर कुतिया अयोध्याके राजाकी रूपवती नामकी सुदर राज कुमारी हुई ! यह धर्मका माहात्म्य है, अमिभूति । मिस जन्माष चाण्डाल पुत्रीको तुम देख आये हो, वह भी निकट भव्य है ! उसे धर्मका स्वरूप समझाओ । उसका जीवन भी समाप्त होनेवाला है, धर्मामृत पिलाकर उसे भमर जीवनकी झाकीभर तो करावो फिर देखो वह एक दिन अवश्य ही लोकबन्ध हो जायगी !" श्रेणिक ! सचमुच अमिभूति मुनि यह सुनकर तत्क्षण उठे और बड़े प्यार तथा सहानुभूतिसे उन्होंने उस इत्माग्य चाण्डालपुक्तिको धर्मका मर्म मुझाया। तरह तरहसे समझाबुझाकर उसके परि
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy