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________________ DusinianbianaliAIMIMADIGIBIRHUDURGINIONSIBIGIOUBBINDURBINIDIUDURAUDIOmandue-BIBAD [ ] अमर शहीद पाण्डाल चण्ड । पुष्कलावतीदेशमें पुण्डरीकिणी नामकी एक नगरी थी। गुण. पाल उम देशका राजा था। राज्य करने हुये उसे बहुत दिन होगये थे । बाल उसके पक गये थे। उसका सपूत बेटा बसुपाल भी स्याना होगया था। गुणपालने मोचा कि राज्यभार वसुपालके सुपुर्द करूं और मैं कुछ अपनी आत्माका भी हित कर लू । राजगट तो खून किया, अब आखिरी वक्त तो सुधार लं।' गुणपाल यही सोच रहा था कि उसके बनपालने आकर उसके सम्मुख मम्तक नवा दिया। राजाने पूछा- वत्स ! क्या समाचार है ? " वनपालने उत्तर दिया--' महाराज ! जो पानमे एक पोधन श्रमण महात्मा पधारे है । वे महान योगी है।' वनपाल के मुखसे अपने मन चेनं मम चार सुनकर राना गुणपाल को बडी प्रपन्नता हुई। उन्होंने वनप को खूब इनाम देकर विदा किया और स्वय उन साधु महात्म की वन्दना करने के लिये व चर पड़े। नम-दिगम्बर साधु महाराज के दर्शन करके राजा गुणालने अपने भाग्यको सराहा । सचमुच साधु महाराजका भात्मतेज उनके मुखपर छिटक रहा था। जो मनमें होता है, वह मुंह पर चमकता ही है । वह योगी थे। योगीका योग-आत्माका प्रभाव उनके मुखसे ___x पुण्याला याकोष पृ० २२८.और बाराधना कथा कोषमें वर्णित कथाके लाधारसे।
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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