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________________ BinarauBIRDINIDIOilmiBurmausamuansuiaDausilanmail HINDHURI यमपाल चाण्डा [४३ उनके महत्वमें कमीवेशी होना दुसरी बात है। राजाको सव ही प्रकारके जीवोंके अधिकारोंकी रक्षा करना इष्ट था और सुखी जीवन विताना यह तो संसारमें प्रत्येक जीवका जन्मसुलभ प्रमुख अधिकार है। साम्यभाव इसीका नाम है। राजाने इसीलिये एक पशुके प्राणोंके घातका दंड युवरानके प्राण लेकर चुकाया । आह ! कितना महान् त्याग था उनका ! इकलौते बेटेको कर्तव्यकी बलिवेदी पर उत्सर्ग कर देनेका सत्साहस दर्शाकर न्याय और साम्यवादकी रक्षाके लिये सच्चे राजत्वका आदर्श उन्होंने उपस्थित किया । धन्य थे राजा महावल! आर्य जगतमें प्रत्येक मासकी अष्टमी और चतुर्दशी पवित्र तिथिया मानी गई है। अज्ञात कालसे धर्मात्मा सजनवृन्द इन तिथियोंके दिन विशेषरूपमें धार्मिक अनुष्ठान करते आये हैं; जिसके कारण यह तिथियां धर्मसे खासी संस्कारित हुई हैं । यही इनके पुण्यरूप होनेका रहस्य है। अच्छा, तो उस दिन भी चतुर्दशी थी जिस दिन पोदनपुरके राजकुमार शूली पर चढ़ाये जानेको थे। निर्दयी यम उनके सामने खड़ा मुस्करा रहा था; परन्तु साथ ही उसके कर नेत्र यमपाल पर भी पड़ रहे थे। यमपालके सामने भी जीवन-मरणका प्रश्न उपस्थित था। चतुर्दशीका पवित्र विन-यमपाल अहिं. सावती-वह हत्या कैसे करे ? यदि वह राजकुमारको शुलीपर चढ़ाये तो उसका व्रत भङ्ग हुमा जाता है और यदि व्रतकी रक्षा वह करे तो राजाकी कोपामिमें उसे सशरीर भस्म होना पड़ेगा! बेचारा यमन
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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