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। ॐ नमः सिद्धेभ्यः॥
पतितोद्धारक जैनधर्म।
सूर्यका धवल प्रकाश सर्वोम्मेवी है। गङ्गाका निर्मल नीर सबको
ही समान रूपमें मुखद है। प्रकृति इस धर्मकी सार्वभौ- भेदको नहीं जानती कि वह प्राणियोंमें किसीके मिकता। साथ प्रेम करे और किसी के साथ द्वेष !
सूर्यका प्रकाश यह नहीं देखता कि यह किसी अमीरका ऊंचा महल है अथवा किसी दीन हीन रककी कुटिया ! गङ्गाकी निर्मल धारा यह नहीं देखती कि गंगाजलको भग्नेवाला कुलीन ब्राह्मण है अथवा एक न कही। मृद ! प्रकृतिकी यह स्वामाविक सहनता धर्मका वास्तविक रूप और उसके उपयोगका यथार्थ अधिकार सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है। सूर्य प्रकाशकी तरह ही धर्म