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वेमना।
[१८७ " कुछ नहीं, मेरी प्रेमिका वेश्याकी एक इच्छा है। आप उसे पूरी करें तो मैं भोजन करूँगा।"
“वह क्या ?" ' आपके सब गहने एकवार पहनना चाहती है !"
' इसीके लिए तुम इतने उदास हो ? तुमने सीधे भाकर मुझसे क्यो नहीं कहा ''
" हिम्मत नहीं थी !"
• अच्छा " कहकर भौजाईने एक बुलाकके सिवा सब गहने उतारकर देदिये । वेमना खुशी-खुशी वेश्याके घर पहुंचे। वेश्याने सब कुछ देखकर कहा:
'प्यारे ! तुमने बहुत अच्छा किया, लेकिन एक भूल की है .' "वह क्या है ?"
" सब गहने हैं। लेकिन एक बुलाक नहीं है; जिसपर हीरे जड़े हैं। इसलिए जल्दी जाकर वह भी ले आओ।"
“ वेमना ! फिर क्यों आए ? क्या हुआ ? "
“ कुछ नहीं ! बुलाक तो आपने दी ही नहीं !" ___“ सब गहने होनेपर यह एक बुलाक नहीं हुआ तो क्या
“ऐसा नहीं, जल्दी वह भी दे दीजिये । नहीं तो मेरी जान बचनी कठिन हो जायगी!"
भावजने हँसकर कहा-"वेमना, अपनी माता, बड़े बाई और सन परवार छोड़कर इस वेश्यापर इवने लट्ट क्यों हो?"