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________________ Ad Sudamanianua1a1a1a1a1a1a1aBIBIDIIslamiIDIOmansuIDINDUSUMushaira महात्मा कर्ण। सुनकर कर्णके हृदय में भी मातृस्नेह जागृत होगया । वह झटसे मांके पैरोंमें गिर पड़ा । कुन्तीने उसे उठाकर छातीसे लगा लिया । बड़ी देर तक मां-बेटेका यह मौन संमिलन चला। आखिर कुन्ती बोली-'कर्ण! युधिष्ठिर आदि तुम्हारे छोटे भाई हैं। मो, तुम इन्हें अपनी छत्रछाया में लो। अपने ही इष्टजनोंका महित अब तुम कैसे करोगे? ___ कर्ण-'मां, तुम सच कहती हो । यह मेरे भाई हैं; परन्तु बांधवोंके प्रेममें मनुष्यको अपना कर्तव्य भुलाना उचित नहीं । जरासिन्धुने मेरी रक्षा की है । यह शरीर उसीका है; मैं उसकी आज्ञा मानूंगा । हां, अपने भाइयोंसे युद्ध नहीं करूंगा; यह वचन देता हूं।' कु० - पाण्डुका पुत्र ही कर्तव्य पालन कर सक्ता है । धन्य हो, मैं तुम्हें पाकर अपने कुमारी जीवन के कलङ्कको भूल गई हूं!' ___ कर्ण यह सुनकर उठ खड़ा हुआ। मा, यदि जीवित रहा तो फिर मिलूंगा।' कहकर उसने कुन्तीका चरणस्पर्श किया ! कर्ण विचारमम हो अपने शिविरको चला गया। वह सोचता था कि दुनियां में कैसा दम्भ है ? अपनी प्रतिष्ठा और सम्मानके झूठे मोहमें लोग अपनी संतानको भी जलप्रवाह कर देते है । इस पावंडकी धज्जियां उड़ना चाहिये । लोकका कल्याण सत्यकी शरणमें आनेसे होगा। इस युद्धके उपरान्त मै इस पाखण्डसे युद्ध लड्नेका अनुष्ठान करूंगा, यही कर्ण की प्रनिज्ञा है ! सुदर्शन उद्यानमें निर्गन्धाचार्य दम विराजमान थे। वर्ष
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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