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________________ [१०९ BIPIOI .Hum. in. -automah H OUDURRE मुनि कार्तिकेय। [१] मुनि कार्तिकेय ।* नगरमें राजा राज्य करते थे। उनके राजदरबारमें बड़े २ दिग्गज विद्वानों और वेदपाठी पण्डितोंका जमघट रहता था। उस दिन उनमें बड़ी चहलपहल थी, अदभ्य उत्साह था, सब ही पण्डित और विद्वान प्रसन्नचित्त थे। बात यह थी कि उस दिन राजा एक महत्वशाकी प्रश्नका निर्णय करानेकी सूचना जनसाधारणको दे चुके थे। राजदरबार ठसाठस भरा था। मंत्री और उमराव, पण्डित और विद्वान सब ही अपने यथायोग्य आसनों पर बैठे हुए थे। एकदम सभाजन उठ खड़े हुये और एक ध्वनिसे सबने कहा'श्री महाराजाधिराजकी जय हो !' ___ राजा आये और सिहासन पर बैठ गये । पण्डितोंमें उनके प्रश्नको जानने के लिये उत्कंठा बढ़ी । राजाने मंत्रीकी ओर इशारा किया । मंत्रीने खडे होकर कहना शुरू किया: " सज्जनों ! हमारे महाराज कितने न्यायशील और सरल है, यह आप लोगोंसे छिपा नहीं है। आप जो भी कार्य करते है उसमें अपनी प्रमुख प्रजाकी संमति ले लेते हैं । आम भी आपके सम्मुख एक ऐसा ही प्रश्न विचार करनेके लिये उपस्थित करनेकी आज्ञा श्रीमानने दी है। आप सोच विचार कर उत्तर दीजिये । प्रश्न यह है कि जिस वस्तुका जो उत्पादक होता है वह उसका * भाराधना कथाकोषमें वर्णित कथाके अनुसार ।
SR No.010439
Book TitlePatitoddharaka Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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