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-पाश्वनाथ
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स्वयं घायल होकर स्त्रियों के दास बने फिरते है, वे अखंड ब्रह्म चर्य का मार्ग कैसे दिग्बा सकते है ? जो स्वयं भयभीत है, और भय के मारे गदा, त्रिशूल, चक्र आदि हथियार वॉधे फिरते है, वे भक्तो को निर्भयता कैसे सिखाएंगे ? जो अपने शत्रो का संहार करने के लिए, मोक्ष मे से भागेाते कहे जाते है, वे दया, क्षमा और मध्यस्थता की सीख किस मुंह से दे सकेगे ? अतएव ऐसे देव, मुमुक्षु जीव के आदर्श नहीं हो सकते! ___ अठारह दोषो पर, जिन्होने पूर्ण रूप से अंतिम विजय प्राप्त करली है, अतएव जो पूर्ण वीतराग है. पूर्ण सर्वज्ञ है, पूर्ण हितकर है, अनत आत्मिक सुख के सागर है, चौतीस अतिशय और पैतीस व्याख्यान-वाणी सहित है, जिन्होंने कामना मात्र को दवा दिया है, निष्काम भाव से जो जगन को सुख का सन्मार्ग बतलाते है, वहीं सच्चे देव हैं। उनकी उपासना ही व्यक्ति को उन्ही के समान, सच्चा देव बनाती है, और संसार के दु.खों से बचाकर अजर-अमर अविनाशी पद पर पहुँचाती है।
सम्यग्दृष्टि जीव यात्मा की ओर अभिमुख होता हुआ ष्टि मे एक ऐसी निर्मलता प्राप्त करता है, कि उसे तत्वों का मिथ्याज्ञान नहीं होता। वह तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप को ग्रहण करता है। यही सन्यग्ज्ञान है। यों तो ज्ञान आत्मा का गुण है, और गण सहभावी धर्म है, अतएव वह अात्मा मे सदैव विद्यमान रहता है। किन्तु उसमे पर्यायान्तर होता रहता है दर्शनमोहनीय कर्म के उदय से जब मिथ्यात्व का उदय होता है, तो मिथ्यात्व के ससर्ग से ज्ञान गण विकृत हो जाता है-मिथ्या वन जाता है। जब सम्यक्त्व प्राप्त होता है, तब ज्ञान का विकार भी दूर हो जाता है, और वह भी मम्यक्त्व प्राप्त करता है। इस