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বাংলায়
इतना कह कर वह दूकानदार के पास चला गया । उसके । साथियों ने देखा कि यह लोभी व्यर्थ समय नष्ट कर रहा है तो वे अपने रास्ते लगे।
लोभी दूकानदार के पास पहुंचा। आटा-दाल का बारीकी से हिसाब लगाया और दमड़ी वापस मांगी । दूकानदार ने जब दमडी लौटादी तो वह बड़ी प्रसन्नताके साथ-जैसे कोई खजाना मिल गया हो- अपने साथियों की ओर चला । साथी आगे निकल गये थे। रास्ता जंगल का था। सोचा जल्दी-जल्दी पैर उठा कर उन्हें पकड़ लंगा । वह अकेला साथियों के मिल जाने के वल पर जंगल से चल पड़ा। ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता चला त्यों त्यों जंगल अधिक बीहड, भयंकर, सुनसान और सघन वक्षों से आच्छादित आने लगा ! अकेला बणिक मारे भय के कांप रहा था । श्वास फल रहा था। प्राणों के साथ-साथ मोहरों का मोह कम न था। चल क्या रहा था-मानों भागा जाता था। देववश लटेरों का एक गिरोह चटोहियों की ताक मे बैठा हुआ था । अकेला मालदार वणिक पाकर उन्होने उसे आसानी से लट लिया । वणिक रोता-पछताता जान बचाकर घर की ओर भागा। तात्पर्य यह है कि एक दमड़ी के लिये लुब्ध वणिक ने गांठ की हजार मोहरें गंवादी । कौन ऐसा व्यक्ति है जो इस वणिक की लालसा पर हँस न दे ? पर सच यह है कि समस्त विषयी प्राणी इस वणिक की कोटि के है। जो लोग क्षणिक विषय-सुख रूपी दमड़ी के लिए मुक्ति के निरतिशय आनंदरूपी मुद्राओं को गॅवा रहे है वे क्या उस वणिक से अधिक विवेकशील हैं ? और सुनो
एक राजा को असाध्य रोग हो गया। राजा को चिकित्सकों